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ग़ज़ल
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
तेशे की क्या मजाल थी ये जो तराशे बे सुतूँ
था वो तमाम दिल का ज़ोर जिस ने पहाड़ ढा दिया