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ग़ज़ल
गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की
मिरी राहों में भी हाइल हैं दीवारें क़दामत की
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
ऐ दुख़्तर-ए-रज़ शायद तू जोश में आई है
मुँह लगती है मर्दों के क्या शोख़ लुगाई है
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
चेहरों पे लिक्खे लोगों के सदमे पढ़ा करो
क़ब्रों पे लिक्खे मर्दों के कत्बे पढ़ा करो
समीना रहमत मनाल
ग़ज़ल
तुम्हारी अज़्मत-ए-दस्तार तो तस्लीम है नासेह
कलेजा राह-ए-हक़ में शेर मर्दों का दहलता है
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
मैं इक औरत हूँ घर भर की ज़िम्मेदारी है मेरी
मर्दों को तो काम बड़े हैं चाँद पे जाना होता है
सीमा नक़वी
ग़ज़ल
ख़ूब रिंदों ने उड़ाए हैं मज़े दुनिया के
हीज़ को बक्र है मर्दों की वो मदख़ूला है