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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चलो अच्छा ही हुआ मुफ़्त लुटा दी ये जिंस
हम को मिलता सिला-ए-हुस्न-ए-नज़र ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दिल की मताअ' तो लूट रहे हो हुस्न की दी है ज़कात कभी
रोज़-ए-हिसाब क़रीब है लोगो कुछ तो सवाब का काम करो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना मुझे क्यों कर हो 'कँवल'
ख़ातिर-ए-हुस्न पे हर बात गिराँ गुज़री है
कँवल एम ए
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
उफ़ ये तलाश-ए-हुस्न-ओ-हक़ीक़त किस जा ठहरें जाएँ कहाँ
सेहन-ए-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
ख़ल्लाक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बड़ा दिल-नवाज़ है
तख़्लीक़-ए-शम्अ' होते ही परवाना बन गया