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ग़ज़ल
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ये सच मसल है बुतो सब का है ख़ुदा रज़्ज़ाक़
नसीब-ए-ताइर-ए-दिल है अज़ल से दाना-ए-इश्क़
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है
मगर मिरे दिन गुज़र रहे हैं मगर मिरा वक़्त टल रहा है