आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "maskhara"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "maskhara"
ग़ज़ल
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छुपा के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते