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ग़ज़ल
भूले हैं गर्दिश-ए-मीना-ए-फ़लक का नैरंग
अहल-ए-ज़र जितने हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
तुम से अहल-ए-ज़र की शान-ए-कज-कुलाही क्या कहें
जो भी दाख़िल सफ़ में था मस्त-ए-मय-ए-पिंदार था
बहज़ाद फातमी
ग़ज़ल
तीस दिन के लिए तर्क-ए-मय-ओ-साक़ी कर लूँ
वाइज़-ए-सादा को रोज़ों में तो राज़ी कर लूँ
शिबली नोमानी
ग़ज़ल
जब कभी आया तो ज़िक्र-ए-मय-ए-गुलफ़ाम आया
कुफ़्र आया तिरे रिंदों को न इस्लाम आया
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
मुझे तो जाम-ओ-मय-ओ-गुल का इंतिज़ार नहीं
मैं ख़ुद बहार हूँ मेरे लिए बहार नहीं
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
ऐ सब्ज़-रंग मस्त-ए-मय-ए-इश्क़-ओ-हुस्न तो
अफ़यूँ को पूछते नहीं क्या ज़िक्र भंग का