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ग़ज़ल
जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं
ये कैसा शहर है ज़ालिम को ज़िंदा छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
पहुँचना दाद को मज़लूम का मुश्किल ही होता है
कभी क़ाज़ी नहीं मिलते कभी क़ातिल नहीं मिलता
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
तुम किसी मज़लूम की आवाज़ बन कर गूँजना
याद मेरी जब तुम्हें शिद्दत से तड़पाने लगे