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ग़ज़ल
उस से पूछूँ शब-ए-वस्ल में मैं छेड़ के ये
मुँह से अपने भी तो कह मैं हूँ मिलनसार कि तू
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
तेरे हद-दर्जा तग़ाफ़ुल से ये मैं समझा हूँ
इस जज़ीरे की फ़ज़ा इतनी मिलनसार नहीं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
चाय में चीनी मिलाना उस घड़ी भाया बहुत
ज़ेर-ए-लब वो मुस्कुराता शुक्रिया अच्छा लगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
नश्शा-ए-ग़म की सरशारी भी कम तो नहीं थी फिर भी 'अदीब'
तल्ख़ी-ए-मय में ज़हर मिलाना हम को अच्छा लगता था
कृष्ण अदीब
ग़ज़ल
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
तुम तो ख़ूब वाक़िफ़ हो अब तुम्ही बताओ ना
किस में क्या मिलाना है किस से क्या अलग रखना
आदिल रज़ा मंसूरी
ग़ज़ल
मिलन-सारी भी सीखो जब निगाह-ए-नाज़ पाई है
मिरी जाँ आदमी अख़्लाक़ से तलवार जौहर से