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ग़ज़ल
किसी सूरत टपकता ज़ख़्म दिल का कम नहीं होता
ये ज़ख़्म-ए-दिल है ये मिन्नत-कश-ए-मरहम नहीं होता
नईम हामिद अली
ग़ज़ल
दर्दमंदान-ए-अज़ल रखते नहीं दरमाँ का ग़म
सीना-ए-सद-चाक गुल मिन्नत-कश-ए-मरहम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
दर्द मिन्नत-कश-ए-दरमाँ हो ज़रूरी तो नहीं
ज़ख़्म मरहम का ही ख़्वाहाँ हो ज़रूरी तो नहीं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
दर्द ही दर्द थी मिन्नत-कश-ए-दरमाँ तो न थी
ज़िंदगी ख़्वाब तो थी ख़्वाब-ए-परेशाँ तो न थी