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ग़ज़ल
कोई ऐ 'ख़ुमार' उन को मिरे शे'र नज़्र कर दे
जो मुख़ालिफ़ीन मुख़्लिस नहीं मो'तरिफ़ ग़ज़ल के
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
मैं फ़ुग़ान-ए-बे-असर का कभी मो'तरिफ़ नहीं हूँ
वो सदा ही क्या जो उन के दर-ओ-बाम तक न पहुँचे
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
पहले पहले मैं भी था अम्न ओ अमाँ का मो'तरिफ़
और फिर ऐसा हुआ नेज़ों पे सर अच्छे लगे
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-'अकबर' के इस्तिक़्लाल का हूँ मो'तरिफ़
ता-ब-मर्ग उस पर रहे क़ाइम जो दिल में ठान ली
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
जाफ़र शिराज़ी
ग़ज़ल
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर 'अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
मैं मो'तरिफ़-ए-जुर्म हूँ जो चाहो सज़ा दो
इल्ज़ाम-ए-तमन्ना कोई इल्ज़ाम नहीं है
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
वो हमीं थे जिन के कमाल की है ये काएनात भी मो'तरिफ़
वही हम कि आज तमाश-बीं हुए ख़ुद ही अपने ज़वाल के
असलम महमूद
ग़ज़ल
तिरे लुत्फ़-ओ-करम का मो'तरिफ़ है इक जहाँ लेकिन
किसी मजबूर-ए-ग़म की दास्ताँ कुछ और कहती है