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ग़ज़ल
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सहरा की मुँह-ज़ोर हवाएँ औरों से मंसूब हुईं
मुफ़्त में हम आवारा ठहरे मुफ़्त में घर वीरान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
दोस्तों का क्या है वो तो यूँ भी मिल जाते हैं मुफ़्त
रोज़ इक सच बोल कर दुश्मन कमाने चाहिएँ