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ग़ज़ल
था मिरा हंगामा-ए-वहशत अज़ल से पेशतर
अर्श की ज़ंजीर टुकड़ा है मिरी ज़ंजीर का
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
दर्दमंदान-ए-अज़ल रखते नहीं दरमाँ का ग़म
सीना-ए-सद-चाक गुल मिन्नत-कश-ए-मरहम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
हूँ ग़श रोज़-ए-अज़ल से जल्वा-ए-दीदार पर
तूर की तक़रीर थी गोया इक अफ़्साना मेरा
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
ये कब से दफ़्तर-ए-उश्शाक़ में है नाम मिरा
लिखा था किल्क-ए-अज़ल ने तुझे सलाम मिरा
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
बे-अमल लोगों से जब पूछो तो कहते हैं की 'शान'
हम अज़ल से क़िस्मत-ए-नाकाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
इस ‘अक़ीदे ने लिया क़ैसर-ओ-किसरा से ख़िराज
मौत का वक़्त अज़ल से है मुक़र्रर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
देरीना सितम-कश हूँ ज़माने में अज़ल से
क्या जौर निकालेगा नए चर्ख़-ए-कुहन अब
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ में दिन-रात हम हैं सरगर्दां
अज़ल से था यही सौदा हमारे सर के लिए
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
अजल के हाथ से आख़िर निकल आया भरम मेरा
निहाँ था अंदरून-ए-पर्दा-ए-हस्ती अदम मेरा
मुंशी मोहम्मद हयात ख़ाँ मज़हर
ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मैं हूँ वो गुमनाम जब दफ़्तर में नाम आया मिरा
रह गया बस मुंशी-ए-क़ुदरत जगह वाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
हम-नशीं पूछ न हाल-ए-दिल-ए-नाकाम-ए-अज़ल
यही हसरत रही पूरा कोई अरमाँ न हुआ