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ग़ज़ल
वाइ'ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद
दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुझ से मुक़ाबले की किसे ताब है वले
मेरा लहू भी ख़ूब है तेरी हिना के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
जो दुआ को हाथ उठाए भी तो मुराद याद न आ सकी
किसी कारवाँ का जो ज़िक्र था वो पस-ए-ग़ुबार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
तिरे एहसास की ख़ुशबू हमेशा ताज़ा रहती है
तिरी रहमत की बारिश से मुरादें भीग जाती हैं