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ग़ज़ल
ये ख़ुद-सर वक़्त ले जाए कहानी को कहाँ जाने
मुसन्निफ़ का किसी किरदार में होना ज़रूरी है
शोएब बिन अज़ीज़
ग़ज़ल
मुझे है मालूम ऐ मुसन्निफ़ कि मेरा किरदार सानवी है
जहाँ इज़ाफ़ी लगे तुम्हें ये मुझे कहानी में मार देना
दानिश अज़ीज़
ग़ज़ल
रख दिया है लिखने वाले ने कलेजा चीर कर
है मुसन्निफ़ मुन्कशिफ़ हर लफ़्ज़ में तहरीर के
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
मुसन्निफ़ ख़ूब करता है बयाँ तसनीफ़ को अपनी
किसी दिन वो सुनें मेरी ज़बाँ से दास्ताँ मेरी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
बूटा ख़ान राजस
ग़ज़ल
लौह-ए-महफ़ूज़ के मुसन्निफ़ ने जो बराए-बशर किया तहरीर
कोई इंजील इस को कहता है कोई क़ुरआन इस को कहता है