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ग़ज़ल
मुशाइरा में पढ़ो शौक़ से ग़ज़ल 'बीमार'
कि मुस्तइद हैं सुख़न-संज मरहबा के लिए
शैख़ अली बख़्श बीमार
ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-कलाम-ए-'मशरिक़ी' उस को रहा भी याद
सुन कर मुशाइ'रा में जो मेरी ग़ज़ल गया
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
तमाम बज़्म ख़फ़ा है मगर न जाने क्यूँ
मुशाइरे में 'शफ़क़' को बुलाना पड़ता है
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
किसी को तो मुशर्रफ़ कर दे ऐ शौक़-ए-जबीं-साई
तक़ाज़ा कर रहे हैं काबा ओ बुत-ख़ाना बरसों से