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ग़ज़ल
दर्द-ए-फ़िराक़-ए-यार से दोनों हैं बे-क़रार
क़ाबू में दिल नहीं मुतहम्मिल जिगर नहीं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
तुम आ के क्या मुतबस्सिम हुए लहद पर मिरी
चराग़-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ जला दिया तुम ने
जमीला ख़ातून तस्नीम
ग़ज़ल
उस को हर शब है ज़वाल उस को नहीं है कुछ नक़्स
बद्र को चेहरे से उस के मुतमस्सिल न करो
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
हिसाब-ए-शौक़ का दफ़्तर लिखा तो झुँझला कर
कहा मैं क्या मुतसद्दी था जो हिसाब लिखा