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ग़ज़ल
जब फँसा ज़ुल्फ़ में जा दिल न रहा नंग-ओ-हया
ताक़ पर रखिए वहाँ नंग-ओ-शरम दोनों एक
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
जो नंग-ए-चमन कहते हैं तारीख़ तो देखें
हम रूह-ए-चमन ज़ीनत-ए-गुलज़ार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मैं नंग-ए-देहली हूँ नंग-ए-सुख़न-वराँ 'साहिर'
असातिज़ा की ज़बाँ क्या करूँ दहाँ में नहीं
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
ख़ुशी तन्हा नहीं आती जिलौ में ग़म भी होता है
जहाँ हँसती हैं कलियाँ गिर्या-ए-शबनम भी होता है
एहसान दानिश
ग़ज़ल
नज़र तराश ले दर्पन तो नंग-ए-नाम-ओ-नुमूद
नज़र पनाह में ले ले तो दिल-पज़ीर हूँ मैं
राम प्रकाश राही
ग़ज़ल
ऐ नंग-ए-ग़म-ए-‘इश्क़ तुझे शर्म नहीं है
किस मुँह से तू कहता है ग़म-ए-यार ने मारा
नज़ीर हुसैन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
'असद' साग़र-कश-ए-तस्लीम हो गर्दिश से गर्दूं की
कि नंग-ए-फ़हम-ए-मस्ताँ है गिला बद-रोज़गारी का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सूफ़ियान-ए-साफ़-तीनत वासिल-ए-हक़ हो गए
ख़ुद-नुमा दो चार नंग-ए-अहल-ए-इरफ़ाँ हों तो क्या