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ग़ज़ल
न हो जो ज़िंदगी अंजाम वो विज्दान-ए-नाक़िस है
हुज़ूर-ए-शम' बा'द-ए-वज्द परवाने पे क्या गुज़री
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
वो ख़ुद कामिल हैं मुझ नाक़िस को जो कामिल समझते हैं
वो हुस्न-ए-ज़न से अपना ही सा मेरा दिल समझते हैं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
है हिलाल ओ बद्र में इक नूर पर जो रौशनी
दिल में नाक़िस के है वो कामिल के दिल में और है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
गिर्या बे-तासीर ओ फ़रियाद-ए-दिल-ए-मुज़्तरिब ख़राब
कार-ए-इश्क़-ओ-आशिक़ी नाक़िस तमाम अक्सर ख़राब
अनवर देहलवी
ग़ज़ल
ये किस ता'मीर-ए-नाक़िस की भरी जाती हैं बुनियादें
कि दुनिया बे-चराग़-ए-आदमियत होती जाती है
एहसान दानिश
ग़ज़ल
अफ़रोज़ आलम
ग़ज़ल
नाक़िस थी इब्तिदा तो है अंजाम-ए-इश्क़ भी
बे-रब्ती मुब्तदा में जो थी वो ख़बर में है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
ढूँड कुछ लोग मुक़ाबिल हूँ जहाँ मैं तेरे
शहर-ए-नाक़िस में कहाँ हम से हैं ग़म-ख़्वार मियाँ
विशाल खुल्लर
ग़ज़ल
बे-यक़ीनी सू-ए-ज़न ईमान-ए-नाक़िस की दलील
फ़िक्र-ए-राहत खतरा-ए-ग़म के सिवा कुछ भी नहीं
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
मिरी दानिस्त-ए-नाक़िस में कमाल-ए-ख़ुद-नुमाई है
ज़मीं से आसमाँ तक आप का मशहूर हो जाना