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ग़ज़ल
कितने अरमान उसे देख के जागे थे 'सुमन'
सो गए सब लब-ए-इक़रार को पढ़ते पढ़ते
संगीता श्रीवास्तव सुमन
ग़ज़ल
मुंतज़िर मैं हूँ 'सुमन' कोई कहीं से आ कर
दिल अभी तक जो मकाँ है वो उसे घर कर दे
सुमन ढींगरा दुग्गल
ग़ज़ल
क्या कहूँ 'नसरीन' सब हैं ख़्वाब-ए-ग़फ़लत के असीर
बे-बसीरत हैं मगर ये ज़ो'म है बेदार हैं
नसरीन सय्यद
ग़ज़ल
हैं जिस की मुंतज़िर 'नसरीं' ये आँखें काश आए
फ़ना-ए-नग़्मा-ए-तार-ए-नफ़स होने से पहले
नसरीन सय्यद
ग़ज़ल
नहीं था सहल मिट्टी का सफ़र कुंदन तलक 'नसरीं'
'अता-ए-'इश्क़ है आख़िर रहे हम कीमिया हो कर
नसरीन सय्यद
ग़ज़ल
दमकते रुख़ सितारा आँख पर 'नसरीं' गुमाँ कैसा
पड़ेगी माँद सारी ताब-ओ-तब आहिस्ता आहिस्ता