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ग़ज़ल
मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हर इक जुर्म-ए-मोहब्बत उस निगाह-ए-लुत्फ़ के सदक़े
नवेद-ए-आफ़ियत ले कर ख़ता करने का वक़्त आया
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
नवेद-ए-जाँ-फ़िज़ा है क्या ख़बर क़ातिल के आने की
बताओ तो सही तुम 'दाग़' ऐसे शादमाँ क्यूँ हो
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
नवेद-ए-सर-बुलंदी दी मुनज्जिम ने तो मैं समझा
सगान-ए-दहर के आगे ख़ुदा होने का वक़्त आया