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ग़ज़ल
ख़ुशी की जिन मंज़िलों से अब मैं गुज़र रहा हूँ
ये तय है दुख का निदान कर के मैं सो रहा था
महेंद्र कुमार सानी
ग़ज़ल
दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है