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ग़ज़ल
निगाह-ए-हुस्न-ए-तलब एहतिराम किस का था
किया जो नज़रों से तू ने सलाम किस का था
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
निगाह-ए-हुस्न जब गोया हो तो तस्वीर बनती है
दिगर ख़ूबी तो बस तस्वीर की तफ़्सीर होती है
प्रोफ़ेसर महमूद आलम
ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शफ़क़ शफ़क़ मुझे देखे निगाह-ए-हुस्न-ए-शुऊ'र
नक़ीब-ए-मेहर बनूँ नग़मा-ए-सहर में रहूँ
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ग़ज़ल
ख़याल-ए-हुस्न-ए-बे-मिसाल दस्तरस में आ गया
ख़ुदी पे इख़्तियार मेरा पेश-ओ-पस में आ गया
जानी लखनवी
ग़ज़ल
बाग़ तक क्या कारवान-ए-हुस्न-ए-बे-परवा गया
बू परेशाँ है रुख़-ए-गुल को पसीना आ गया
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
ऐसी आँखें तू ने दीं ऐ हुस्न-ए-जानाना मुझे
ज़र्रा ज़र्रा अब नज़र आता है बुत-ख़ाना मुझे