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ग़ज़ल
त्रिपुरारि
ग़ज़ल
खींचते हो कैसी बेदर्दी से मेरे दिल से तीर
चारासाज़ो क्या तुम्हारे पहलुओं में दिल नहीं
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
कई ज़ाविए हैं सवाल के यही ग़ौर करना है अब तुझे
जहाँ मसअलों के भी हल मिलें उन्हीं पहलुओं को सुख़न बना
अख़्तर हाशमी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं