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ग़ज़ल
उस ने हम को हल्दी क्या दी हम पंसारी बन बैठे
लेने वाले मालिक ठहरे देने वाला कुछ भी नहीं
तनवीर गौहर
ग़ज़ल
ये है मय-कदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है
ये हरम नहीं है ऐ शैख़ जी यहाँ पारसाई हराम है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मन बै-रागी तन अनुरागी क़दम क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है