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ग़ज़ल
पी पी पपीहे बोलते होंगे कानों में रस घोलते होंगे
ठुमरी होगी कोयल की कू कजरी कागा की काओं रे
ग़ौस सीवानी
ग़ज़ल
''वही पी कहाँ वही पी कहाँ'' यही एक रट सी जो है सो है
महाराज चोट सी लगती है मुझे इस पपीहे की टेर से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
घटा वादी पे घिर आती हवा में ताज़गी लाती
पपीहे ने सदा दे दी कि अब मौसम बदलता है