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ग़ज़ल
पस्ती-ए-ज़मीं से है रिफ़अत-ए-फ़लक क़ाएम
मेरी ख़स्ता-हाली से तेरी कज-कुलाही भी
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
आसमाँ की खोज में हम से ज़मीं भी खो गई
कितनी पस्ती में मज़ाक़-ए-बाल-ओ-पर ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
मैं सुर्ख़ हूँ तुम सुर्ख़ ज़मीं सुर्ख़ ज़माँ सुर्ख़