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ग़ज़ल
पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले
आते हैं किस अदा से इस मुँह पे घाट वाले
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
वो तिरी गली के तेवर, वो नज़र नज़र पे पहरे
वो मिरा किसी बहाने तुझे देखते गुज़रना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था
जौन एलिया
ग़ज़ल
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न ब'अद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख