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ग़ज़ल
जल गया आग में आप अपने मैं मानिंद-ए-चिनार
पीसते रह गए दाँत अर्रा-ओ-सोहाँ क्या क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
हौसले दिल के मोहब्बत में जो पिसते ही रहे
कर के हिम्मत तिरे ग़मज़ों के मुक़ाबिल तो हुए
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
वो ऐसे बिगड़े हुए हैं कि दाँत पीसते हैं
हम ऐसे चुप हैं कि गोया नहीं ज़बाँ मुँह में
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
यूँही पिसते रहोगे वक़्त की गर्दिश में दिल वालो
ख़बर है इंक़लाब-ए-फ़िक्र से क़िस्मत बदलती है
सादिक़ा फ़ातिमी
ग़ज़ल
ना तो पिसते ही से रग़बत है ना बादाम से शौक़
है मगर चश्म-ओ-लब-ओ-साक़ी-ओ-गुलफ़ाम से शौक़