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ग़ज़ल
मैं उस के हाथ न आऊँ वो मेरा हो के रहे
मैं गिर पड़ूँ तो मिरी पस्तियों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
इन पुतलियों का क़र्ज़ चुकाता हूँ क्या करूँ
बस दिल से दिल मिलाता हूँ जब देखता हूँ मैं
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
मिरी रिफ़अ'तों से लर्ज़ां कभी मेहर-ओ-माह ओ अंजुम
मिरी पस्तियों से ख़ाइफ़ कभी औज-ए-ख़ुसरवाना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के
कि उस की पुतलियों से आ रहा है नूर छन छन के