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ग़ज़ल
वाँ करम को उज़्र-ए-बारिश था इनाँ-गीर-ए-ख़िराम
गिर्ये से याँ पुम्बा-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दुख न पावे कहीं वो नाज़नीं-गर्दन प्यारे
तकिया ज़िन्हार सर-ए-बालिश-ए-मख़मल न करो
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
नर्मी-ए-बालिश-ए-पर हम को नहीं भाती है
दम-ए-शमशीर पे सर रक्खें तो नींद आती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अज़-पए-दाग़-ए-दिल-ए-बादा-परसताँ 'बेदार'
पुम्बा-ए-शीशा-ए-मय मर्हम-ए-काफ़ूर हुआ
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
'बख़्श' सय्याद-ए-अज़ल ने हुक्म-ए-आज़ादी के साथ
और असीरी के भी ख़दशे दिल के अंदर रख दिए
बख़्श लाइलपूरी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
ये ज़ब्त-ए-गिर्या में आलम है बे-क़रारी का
कि बर्क़ कौंदती है बारिश-ए-सहाब नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
दे कभी बोसा-ए-चश्म-ओ-लब-ए-चजाँ-बख़्श भी जाँ
सिर्फ़ सौग़ात हमें बोसा-ब-पैग़ाम न भेज