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ग़ज़ल
इतनी जो अज़िय्यत उसे देता है तू हर दम
क्या क़ाबिल-ए-जौर-ओ-सितम ऐ यार वही है
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
किस ज़बाँ से शिकवा-ए-जौर-ए-सितम-आरा करें
जिस को अच्छा कह चुके उस की बुराई क्या करें
मंज़र लखनवी
ग़ज़ल
फ़लक ये जौर-ओ-सितम मुझ से ना-तवाँ के लिए
मैं ही था क्या तिरे ज़ुल्मों के इम्तिहाँ के लिए
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
करेंगे शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा दिल खोल कर अपना
कि ये मैदान-ए-महशर है न घर उन का न घर अपना
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
मेहरबाँ भी कोई हो जाएगा जल्दी क्या है