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ग़ज़ल
तिरी राह कितनी तवील है मिरी ज़ीस्त कितनी क़लील है
मिरा वक़्त तेरा असीर है मुझे लम्हा लम्हा सँवार दे
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
क्या क्या कहूँ मैं तुम से जुदाई के मोड़ पर
शर्मिंदगी ज़ियादा है मोहलत क़लील है
सय्यद कौनैन हैदर काज़मी
ग़ज़ल
क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है
क्यूँकर अदा हो उम्र का रिश्ता क़लील है
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
ज़माना जिन के तसव्वुर से ही लरज़ उट्ठे
क़लील उम्र में वो ग़म उठाए हैं मैं ने