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ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'फ़ज़ा' तुम उलझे रहे फ़िक्र ओ फ़लसफ़े में यहाँ
ब-नाम-ए-इश्क़ वहाँ क़ुरअ-ए-हुनर निकला