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ग़ज़ल
छुपाऊँ लाख राज़-ए-'इश्क़ इफ़्शा हो ही जाता है
मिरी आँखों से इक तूफ़ाँ पैदा हो ही जाता है
अफ़ज़ल पेशावरी
ग़ज़ल
दिल खोटा है हम को उस से राज़-ए-इश्क़ न कहना था
घर का भेदी लंका ढाए इतना समझे रहना था
शौक़ क़िदवाई
ग़ज़ल
राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल बना दिया
उन की नज़र ने दिल को मिरे दिल बना दिया
सय्यद सफ़दर हुसैन
ग़ज़ल
ऐ 'राज़' दर्द-ए-इश्क़ को दिल में बसाएँगे
कुछ अपनी ज़िंदगी में इज़ाफ़ा करेंगे हम
बशीरुद्दीन राज़
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो हैं मारे हुए रंज-ओ-ग़म-ओ-आलाम के ऐ 'राज़'
उन्हें मय-ख़ाने में इक जाम उठाने की ज़रूरत है