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ग़ज़ल
मैं जिस के वास्ते भटका किया ज़माने में
वो अश्क बन के सदा मेरी चश्म-ए-तर में रहा
अंजुम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी
तिरी दुनिया के पीछे भागता फिरता रहा मैं भी