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ग़ज़ल
वक़्त का धारा वक़्त का तूफ़ाँ मैं ने देखा तू भी देख
कल के राजा रंक बने झोली फैलाए फिरते हैं
प्रेम पाल अश्क
ग़ज़ल
जिस क़दर उस से त'अल्लुक़ था चला जाता है
उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे