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ग़ज़ल
थी निगह मेरी निहाँ-ख़ाना-ए-दिल की नक़्क़ाब
बे-ख़तर जीते हैं अरबाब-ए-रिया मेरे बा'द
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रिया-कारी से बचिए ये बहुत ज़हरीली नागिन है
ये नागिन ज़िंदगी भर की 'इबादत छीन लेती है
आलम निज़ामी
ग़ज़ल
सुन के अश’आर मिरे सब यही कहते हैं 'रियाज़'
इस की क़िस्मत है बुरी और तबी'अत अच्छी