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ग़ज़ल
दिखाया मो'जिज़ा हुस्न-ए-बशर का दस्त-ए-क़ुदरत ने
भरी तासीर तस्वीर-ए-गिली के रंग-ओ-रोग़न में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
गर्म-जोशी अपने बा-जाम-ए-चराग़ाँ लुत्फ़ से
क्या ही रौशन कर रही है हर तरफ़ रोग़न की मय
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
रहा करते हैं वो दिल में फिरा करते हैं नज़रों में
'अता करते हैं नूर आँखों को दिल रौशन बनाते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
तुम से एक धनक फूटेगी और कमरे में बिखरेगी
दीवारों पे रंग न रोग़न कुछ भी नहीं है तुम तो हो
स्वप्निल तिवारी
ग़ज़ल
दिल में रंग-ओ-रोग़न-ए-दहक़ाँ का रहता है ख़याल
रोज़-मर्रा गाँव से आता है घी मेरे लिए