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ग़ज़ल
निगाह आसी की रोज़-ए-महशर अमीन-ए-रहमत को तक रही है
अजीब आलम है बेकसी का नज़र से हसरत टपक रही है
तहव्वुर अली ज़ैदी
ग़ज़ल
मैं दीवाना सही लेकिन वो ख़ुश-क़िस्मत हूँ ऐ 'महशर'
कि दुनिया की ज़बाँ पर आ गया है आज नाम अपना
महशर इनायती
ग़ज़ल
हर इक ने मुझ को दीवाना ही ठहराया है ऐ 'महशर'
सभी क़िस्सा-निगारों के क़लम बहके हुए से हैं