न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते
ग़ज़ब कर चले मेहरबाँ चलते चलते
कहेंगे कुछ ऐ बाग़बाँ चलते चलते
अगर देगी यारा ज़बाँ चलते चलते
गिरे हम पस-ए-कारवाँ चलते चलते
थके पाँव अपने कहाँ चलते चलते
तिरी चाल बाद-ए-ख़िज़ाँ ने उड़ाई
उजाड़ा मिरा आशियाँ चलते चलते
करो आँखें झपका के तिरछी निगाहें
सिनानें चलीं बर्छियाँ चलते चलते
भरें सर्द आहें जो गर्म आह भर के
नसीम आई बाद-ए-ख़िज़ाँ चलते चलते
न घबरा ज़रा दामन-ए-रोज़-ए-महशर
करूँगा तिरी धज्जियाँ चलते चलते
अदम को चले क़ैद ज़ुल्फ़-ए-सनम में
रहें पाँव में बेड़ियाँ चलते चलते
दम-ए-नज़अ' सर पर गिरे कोह-ए-उल्फ़त
उठाईं बड़ी सख़्तियाँ चलते चलते
मिरी लाश को पाँव से ख़ूब रौंदा
थमे सूरत-ए-आसमाँ चलते चलते
बस अब तो अदम में मुलाक़ात होगी
ये कहते गए रफ़्तगाँ चलते चलते
न क़ातिल ने तेग़-ए-निगह तक लगाई
न करता गया इम्तिहाँ चलते चलते
जहाँ से गए हश्र तक ख़ूब सोए
लिया साथ ख़्वाब-ए-गिराँ चलते चलते
रहे उम्र-भर तेरी वहदत के क़ाइल
न लीं हम ने दो हिचकियाँ चलते चलते
'रशीद'-ए-हज़ीं लाख रोका किए हम
वो लेते गए नक़्द-ए-जाँ चलते चलते
स्रोत:
Gulistan-e-Rasheed (Pg. ghazal-103 page-95)
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लेखक:
Piyare Sahab Rasheed
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