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ग़ज़ल
इश्क़ की रू से तो मैं क़ैस का हम-ज़ुल्फ़ हुआ
जब वही दश्त-ए-जुनूँ ठहरा है सुसराल मिरा
सरफ़राज़ ख़ान आज़मी
ग़ज़ल
सैंकड़ों गुल हुए ख़ुश-रंग चमन में खिल के
आख़िरश ख़ाक हुए ख़ाक में सब रुल-मिल के