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ग़ज़ल
पुर-ग़ुबारी-ए-जहाँ से नहीं सुध 'मीर' हमें
गर्द इतनी है कि मिट्टी में रुले जाते हैं
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए
रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की क़ीमत होती है
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम
तिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें
यूँही कब तलक ख़ुदाया ग़म-ए-ज़िंदगी निबाहें