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ग़ज़ल
उस की आल वही जो उस के नक़्श-ए-क़दम पर
सिर्फ़ ज़ात की हम ने आल-ए-सादात नहीं देखी
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
तुम पास थे तुम्हें तो हुई होगी कुछ ख़बर
इतना तो अपना शीशा-ए-दिल बे-सदा न था
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
ग़ैर की ख़ातिर से तुम यारों को धमकाने लगे
आ के मेरे रू-ब-रू तलवार चमकाने लगे
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
ग़ज़ल
या हुस्न ही इस शहर में काफ़िर नहीं होता
या इश्क़ यहाँ इज़्ज़त-ए-सादात में गुम है