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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ख़्वाहिश की गर्मियाँ थीं अजब उन के जिस्म में
ख़ूबाँ की सोहबतों में मिरा ख़ून जल गया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
वो दिल ओ जान सूरतें जैसे कभी न थीं कहीं
हम उन्हीं सूरतों के हैं हम उन्हीं सूरतों में हैं