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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मह-ओ-साल ने हमें कैसे ज़ख़्म दिए यहाँ
तिरी यादगार थी इक ख़लिश तिरी यादगार भी अब नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कई साल बा'द मिले हैं हम तिरे नाम आज की शाम है