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ग़ज़ल
कारोबार-ए-ज़िंदगी तक हैं ये हंगामे 'फ़ज़ा'
क्या वो साया छोड़ देगा जो शजर ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
जल गया धूप में यादों का ख़ुनुक साया भी
बे-नवा दश्त-ए-बला में कोई हम सा भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
दस्त-ए-क़ातिल में कोई तेग़ न ख़ंजर होता
मिरा साया जो मिरे क़द के बराबर होता
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
मकीं कितने हैं बे-दीवार-ओ-दर के इन ज़मीनों पर
नहीं है सर पे गर साया तो क्या है आसमाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
हम अपने ख़ल्क़ की दुनिया सँवार कर 'ख़ुशतर'
हुसूल-ए-रहमत-ए-पर्वरदिगार कर लेंगे