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ग़ज़ल
सफ़र जारी है सदियों से हमारा नब्ज़-ए-आलम में
निगाहों से ज़माने की मगर रू-पोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
बहुत दुश्वार है ख़ुद्दार रह कर ज़िंदगी करना
ख़ुशामद करने वाला सदक़ा-ए-दस्तार क्या देता
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
बे-रुख़ी अहल-ए-मोहब्बत से रवा तुम को नहीं
सदक़ा-ए-हुस्न सही मुझ पे निगाहे गाहे
तल्हा रिज़वी बर्क़
ग़ज़ल
बहुत से नौजवाँ घूम आए लंदन और पैरिस तक
कोई मर्द-ए-जरी औसाफ़-ए-इस्माईल तक पहुँचे
ज़हीर अब्बास सायर
ग़ज़ल
वक़्त मासूम-ओ-जरी रूहों के दरपय है 'फ़ुज़ैल'
ज़िंदा जब तक हैं सर-ए-दार समझिए हम को