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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
ताज-ए-ज़र के लिए क्यूँ शम' का सर काटे है
रिश्ता-ए-उल्फ़त-ए-परवाना को गुल-गीर न तोड़
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सहम कर बैठ जाता हूँ गली में शोर-ए-गिर्या से
निकलना है तो फिर इम्कान सारे देख लेता हूँ
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
आंधियों की ज़द में आ कर आरज़ूओं का शजर
ख़ुश्क पत्ते सा सहम कर ख़ौफ़ से लर्ज़ा किया
प्रकाश फ़िक्री
ग़ज़ल
मिरे हाल-ए-ज़ार की दीद से अजब उन का हाल था बज़्म में
जो नज़र पड़ी तो सहम गए जो क़रीब आए तो डर गए