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ग़ज़ल
दर्द का रस्ता है या है साअ'त-ए-रोज़-ए-हिसाब
सैकड़ों लोगों को रोका एक भी ठहरा नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सैकड़ों मुर्दे जलाए हो मसीहा नाज़ से
मौत शर्मिंदा हुई क्या क्या तिरे एजाज़ से
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
सैकड़ों गुम-शुदा दुनियाएँ दिखा दीं उस ने
आ गया लुत्फ़ उसे लुक़्मा-ए-तर देने में
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
सैकड़ों फ़िक्रें हैं तुम को आक़िलो
तुम से तो 'मज्ज़ूब' ही बेहतर रहा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
सोच के गुम्बद में उभरी टूटती यादों की गूँज
मेरी आहट सुन के जागी सैकड़ों क़दमों की गूँज
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
दुश्मनों के ताने हैं दोस्तों की तन्क़ीदें
तीर सैकड़ों हैं और एक दिल निशाना है
शफ़ीक़ अहमद शफ़ीक़
ग़ज़ल
'मुसहफ़ी' दश्त-ए-बला का सफ़र आसान है क्या
सैकड़ों बसरा ओ शीराज़ में मर जाते हैं