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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सरापा रेहन-ए-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-ए-उल्फ़त-ए-हस्ती
'इबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कारज़ार-ए-इश्क़-ओ-सर-मस्ती में नुसरत-याब हों
वो जुनूनी दार तक जाने को जो बेताब हूँ
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
ऐ इश्क़-ए-फ़ित्ना-सामाँ कर दे तू हश्र बरपा
क्या ये नहीं क़यामत आलम है तेरा शैदा
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
पुर्सिश है चश्म-ए-अश्क-फ़शाँ पर न आए हर्फ़
डूबें भी हम तो सैल-ए-रवाँ पर न आए हर्फ़
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम
सब कुछ कहा मगर न खुले राज़दाँ से हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
आग हम संग की मानिंद निहाँ रखते हैं